Mirza Ghalib’s poignant expressions of love have captivated hearts for over a century. His shayari in hindi transcends time, offering profound insights into the complexities of love and longing. In this article, we’ll explore the beauty of Ghalib’s romantic verses, revealing why they remain deeply relevant in today’s world.
Prepare to immerse yourself in the timeless allure of love Mirza Ghalib shayari in hindi and discover how his words can resonate with your own experiences of affection.
Love Mirza Ghalib Shayari in Hindi
No 1:
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
No 2:
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है|
No 3:
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले|
No 4:
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता|
No 5:
बाज़ीचा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगेहोता
है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे|
No 6:

है कहाँ तमन्ना का दूसरा कदम ऐ दोस्तहमने
तो इक कदम पे दुनिया को ठुकरा दिया|
No 7:
आह को चाहिए इक उम्र असर होने
तककौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक|
No 8:
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गईदोनों
को एक साथ ख़ुशी से बेकरार कर गई|
No 9:
ग़म-ए-हस्ती का असद किस से हो जज़्बा-ए-सुकूनशम्मा
को जलते देखा तो परवाने को याद किया|
No 10:
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ को निकम्मा कर
दियावरना हम भी आदमी थे काम के|
Zindagi Mirza Ghalib Shayari in Hindi
No 1:
“हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।”
No 2:
“इश्क़ पर जोर नहीं, है ये वो आतिश ग़ालिब,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।”
No 3:
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
No 4:
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
No 5:
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
No 6:

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
No 7:
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं
No 8:
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था।
No 9:
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’,
कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था।
No 10:
मौत का एक दिन मुअय्यन है,
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती।
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Mirza Ghalib ki Shayari
No 1:
“वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं..”
No 2:
“रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है…”
No 3:
“हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है…”
No 4:
“हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता…”
No 5:
“तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई…”
No 6:
“बिजली इक कौंध गयी आँखों के आगे तो क्या,
बात करते कि मैं लब तश्न-ए-तक़रीर भी था।…”
No 7:
“यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो…”
No 8:
“हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है…”
No 9:
“जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है…”
No 10:
मोहब्बत में नहीं फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले!
मिर्जा गालिब की दर्द भरी शायरी
No 1:
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है।
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते है।।
No 2:
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे।
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है।।
No 3:
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है
No 4:
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
No 5:
दिल को चाहिये कि फिर से उड़ने की तैयारी कर ले,
अभी तो सफर का पहला पड़ाव है।
No 6:

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
No 7:
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
No 8:
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ-सा कहें जिसे
No 9:
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा।
No 10:
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।
ग़ालिब के दर्द भरे शेर
No 1:
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,
मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह।
No 2:
हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया
पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना
कि यूँ होता तो क्या होता
No 3:
ज़िन्दगी अपनी जब शक़ल से गुज़री ग़ालिब
हम भी क्या याद करेंगे के खुदा रखते थे
No 4:
“इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के..”
No 5:
“इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने…”
No 6:
“इश्क़ ने पकड़ा न था ‘ग़ालिब’ अभी वहशत का रंग
रह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए-ख़्वारी हाए हाए…”
No 7:
“आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना ‘ग़ालिब’
किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद…”
No 8:
“अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा…”
No 9:
“इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही…”
No 10:
“इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया…”
Conclsuion
Love Mirza Ghalib shayari in hindi transcends time, capturing the essence of love and longing in a way that resonates deeply with readers. His poetic expressions delve into the intricacies of emotions, painting vivid pictures of passion and heartache.
Each couplet invites us to explore the depths of our own feelings, making Ghalib a timeless companion for lovers and dreamers alike. The beauty of his words lies not only in their lyrical quality but also in their ability to evoke profound reflections on love and life.